"पर्यावरण : परि + आवरण"
अर्थात- "हमारे चारों ओर का वातावरण"
"आशय यह है , कि हमारे आस-पास जो कुछ भी
उपस्थित है , वह पर्यावरण है ।"
for e.g.- पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, विभिन्न प्रकार की गैसें,भूमि एवं इस पर रहने वाले जीव पर्यावरण में सम्मिलित होते हैं । सजीव हों, निर्जीव वस्तुएं हों, छोटे जीव, बड़े जीव, जल,वायु,मिटटी,खेत-खलिहान,पशु-पक्षी, कहने का तात्पर्य यह है, कि चाहें वह जैव वातावरण हो अथवा अजैव वातावरण हो , यह सब हमारे पर्यावरण के अन्तर्गत ही आते हैं ।
पर्यावरण सभी जैविक तथा अजैविक अवयवों का मिश्रण होता है, जो जीवों को चारों ओर से प्रभावित करता है, जिस प्रकार पर्यावरण जीवो को प्रभावित करता है, उसी प्रकार जीव भी अपने पर्यावरण को प्रभावित करते हैं । परन्तु अन्य सभी जीवों की अपेक्षा मनुष्य ने ही पर्यावरण पर नियंत्रण कर उसे अपने अनुकूल परिवर्तित करने में सर्वाधिक सफलता पाई है ।
इस भूमंडल के प्रत्येक कोने में आधुनिक मानव (होमो सैपियंस सैपियंस) ने प्राकृतिक पादप समुदायों को नष्ट करके उन स्थानों को अपने हित को ध्यान में रखते हुए दूसरे पौधे लगाए, उसने शुष्क प्रदेशों में पानी पहुंचा कर तथा जल प्रांत भूमि से फालतू पानी निकाल कर खेती योग्य बनाया इस प्रकार मनुष्य ने प्राकृतिक समुदायों को नष्ट करके नए समुदाय विकसित किए, जंगल के जंगल काट डाले, यहां तक कि ऐसे स्थान को जो खेती योग्य थे वहां पर उसने नगर, सड़क, हवाई अड्डे बनाए और वहां से प्राकृतिक समुदाय को मूल रूप से नष्ट कर दिया ।
इसके अतिरिक्त सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने अपने पर्यावरण को विभिन्न प्रकार के हानिकारक एवं रेडियोधर्मी पदार्थों द्वारा प्रदूषित कर प्राकृतिक संतुलन को असंतुलित किया ।
मोटर वाहनों के धुएं एवं शोर ने भी प्राणियों पर प्रभाव डाला है । सीवेज व कारखानों से निकले अपशिष्ट पदार्थ जल में रहने वाले जीव जंतुओं के लिए हानिकारक होते हैं, उनकी अकाल मृत्यु से प्रकृति प्रभावित होती है, इन सभी का मनुष्य पर भी सीधा प्रभाव पड़ा है ।
इस प्रदूषित वातावरण में स्वयं उसकी उपस्थित को भी खतरा उत्पन्न हो गया है, साथ ही तेजी से बढ़ती हुई मनुष्य की जनसंख्या भी क्षेत्र में एक नई समस्या उत्पन्न कर रही है, अतः मनुष्य के कारण प्राकृतिक पर्यावरण अधिक व्यापक रूप से प्रभावित हुए हैं, और यदि इसी प्रकार जनसंख्या बढ़ती रही तो हमारा पर्यावरण बहुत ही बुरे दौर से गुजरेगा ।
घरों में पूरे दिन कुछ ना कुछ कचरा अर्थात अपशिष्ट पदार्थ निकलते रहते हैं, बासी भोजन, सब्जियों के छिलके, चाय की उपयोग की गई पत्तियां, खाली डिब्बे दूध की थैली, रद्दी कागज, दवा की खाली बोतलें, पुराने फटे कपड़े, टूटे जूते इत्यादि ।
उपरोक्त में से कुछ पदार्थ ऐसे भी हैं, जो समय के साथ गल जाते हैं –
for e.g.- बासी भोजन, सब्जियों के छिलके, चाय की उपयोग की गई पत्ती, गत्ते के खाली डिब्बे, रद्दी कागज पुराने फटे सूती कपड़े, कुछ दिनों बाद गलकर अपना रूप बदल लेते हैं । वहीं कुछ ऐसे पदार्थ (अधिकांशतः प्लास्टिक के उत्पाद) हैं, जिन पर सूक्ष्म जीवों का प्रभाव नहीं पड़ता और वो सरल पदार्थों में नहीं टूटते, जिसके कारण वह गल नहीं पाते और मुख्य रूप से मृदा प्रदूषण का कारण बनते हैं ।
जिन पर सूक्ष्मजीवों का प्रभाव पड़ता है, वह सरल पदार्थों में वितरित कर दिए जाते हैं, जिनका उपयोग हमारे पेंड़-पौधे करते हैं ।
जो पदार्थ पर्यावरण में लंबे समय तक रहते हैं, वह पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं । वे पदार्थों के चक्रण में बाधा भी पहुंचाते हैं । ऐसे बहुत से पदार्थ जल प्रदूषण एवं मृदा प्रदूषण का कारण बनते हैं ।
प्रदूषण मुख्यत: छः प्रकार का होता है -
१. वायु प्रदूषण
२. जल प्रदूषण
३.मृदा प्रदूषण
४.ध्वनि प्रदूषण
५.रेडियोधर्मी प्रदूषण
६. इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण
१. वायु प्रदूषण :
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आप लोग देखते होंगे कि, बड़े बड़े नगरों में, शहरों में आजकल बहुत सी फैक्ट्रियां बहुत से उद्योग-धंधे चल रहे हैं, मोटर वाहन, पेट्रोल डीजल ईंधन के जलने से विभिन्न प्रकार की गैसें उत्पन्न होती हैं । जिसके माध्यम से हमारी वायु प्रदूषित होती है और वायुमंडल में कार्बन का स्तर बढ़ जाता है ।
मुख्य रूप से वायु प्रदूषक- सल्फर डाइऑक्साइड(SO2), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड(NO2) कार्बन मोनोऑक्साइड(CO) होते हैं ।
वायु प्रदूषण से मनुष्य तथा अन्य जीव-जंतुओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है –
for e.g.- एलर्जी हो जाना, आंखे लाल होना, सिर दर्द, उल्टी आना, चक्कर आना, रक्तचाप, चिड़चिड़ापन ।
साथ ही वायु प्रदूषण के कारण पौधों के ऊतक भी क्षीण हो जाते हैं, जिससे पत्तियां मुरझा जाती हैं, पत्तियां गिरने लगती हैं, फलों पर धब्बे हो जाते हैं, शाखाओं की वृद्धि कम होने लगती है, और यह सब होता है,पादपों में क्लोरोफिल के नष्ट होने से क्योंकि पौधों में क्लोरोफिल नष्ट होने के कारण उनमें क्लोरोसिस नामक रोग हो जाता है ।
२. जल प्रदूषण :
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उद्योग धंधों, घरों से निकलने वाला कूड़ा-करकट, सीवेज, गंदी नालियों से होता हुआ नदियों में मिलता है, जिसके कारण जल प्रदूषण होता है । मुख्य रूप से अपने यहां फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए जो हम लोग कीटनाशी, खरपतवार नाशी एवं विभिन्न प्रकार के रसायन उपयोग में लाते हैं । यही रसायन जल के माध्यम से नदियों में, नहरों में, तालाबों में पहुंच जाते हैं, जिससे जलीय पौधों को भी हानि होती है, ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, और साथ ही साथ मृदा भी प्रभावित होती है ।
३. मृदा प्रदूषण :
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मृदा में विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व, जल, कार्बनिक पदार्थ आदि एक निश्चित मात्रा में पाए जाते हैं । इनकी मात्रा में अवांछनीय परिवर्तन मृदा प्रदूषण कहलाता है ।
मृदा को मुख्य रूप से कीटनाशक प्रदूषित करते हैं । जब हम DDT, 2-4-5-T, फिनायल आदि का छिड़काव करते हैं,तब ये पदार्थ जल में घुल जाते हैं और मृदा में पहुंचकर सूक्ष्मजीवों को नष्ट करते हैं । कभी-कभी हम लोग रासायनिक खादों को बहुतायत से प्रयोग करते हैं, इस कारण भी मृदा प्रदूषित हो जाती है ।
प्रदूषित भूमि खेती योग्य नहीं रह जाती है, अर्थात उसकी उपजाऊ शक्ति क्षीण हो जाती हैं ।
४. ध्वनि प्रदूषण :
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अत्यधिक शोर मनुष्य तथा अन्य जीव-जंतुओं पर विपरीत प्रभाव डालता है, शोर की तीव्रता ज्यादा हुई तो हमारी श्रवण शक्ति, शारीरिक संतुलन, मानसिक अवस्था और यहां तक की हमारा ब्लड प्रेशर भी बहुत ही ज्यादा प्रभावित हो जाता है । ध्वनि अर्थात शोर आधुनिक सभ्यता एवं औद्योगिक उन्नत की ही देन है ।
शोर अलार्म घड़ियों, टेलीफोन , सेलफोन , मिक्सर ग्राइंडर वैक्यूम क्लीनर , कपड़े धोने की मशीन , कूलर , जनरेटर एयर कंडीशनर , रेडियो , कैसट प्लेयर , वीडियो प्लेयर, वाहन, उद्योगों की मशीनें, लाउडस्पीकर, रेलगाड़ी, हेलीकॉप्टर, जेट रॉकेट, आदि से उत्पन्न होता है ।
५.रेडियोधर्मी प्रदूषण :
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रेडियोधर्मी पदार्थों से पर्यावरण में विभिन्न प्रकार की किरणें उत्पन्न होती हैं, परमाणु विस्फोट, ऊर्जा उत्पादन केंद्रों, आण्विक परीक्षणों से पर्यावरण में रेडियोधर्मिता बढ़ने का खतरा रहता है । इनमें मुख्य रूप से जल, वायु, तथा मृदा का प्रदूषण होता है । इससे जीवधारियों में आनुवंशिक रोग उत्पन्न हो सकते हैं , साथ ही जीवों की मृत्यु का कारण बन सकते हैं । विस्फोट में इलेक्ट्रॉनों के साथ अल्फा, बीटा, गामा किरणें निकलती हैं, इसके कारण जीवो में आनुवंशिक उत्परिवर्तन(Mutation) होता है ।
६.इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण :
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वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों टेलीविजन, कंप्यूटर, वीडियो गेम से निकलने वाली अदृश्य विद्युत चुंबकीय तरंगों को इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण कहा ।
इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण से संपूर्ण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है , इसके साथ-साथ मस्तिष्क तन्तुओं की भी क्षति होती हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार कंप्यूटर पर लगातार काम करने वाली महिलाओं में गर्भपात की घटनाएं ज्यादा होती हैं ।
प्रदूषण पर जितनी भी बात की जाए उतनी कम है, क्योंकि हम आज इतने विकसित हो चुके हैं, कि हमें हमारे उद्योग धंधे, हमारी फैक्ट्री... कुल मिलाकर हमें जिसमें फायदा हो वह काम करते चले जाते हैं, हम यह नहीं सोचते कि जो हम कार्य कर रहे हैं - कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं या ज्यादा शोर वाली मशीनों को चला रहे हैं, विभिन्न प्रकार की गैसें जो उत्पन्न हो रहीं हैं, जिसके कारण हमारा वातावरण प्रदूषित हो रहा है ।
हमें इसका परमानेंट सल्यूशन ढूंढ़ना होगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा पूरा विश्व पूरी तरह से प्रदूषण से जकड़ चुका होगा और हमारी जो मानव सभ्यता है वह किसी न किसी रोग से ग्रस्त होगी । हमारे जलीय जीव वह भी इससे प्रभावित होंगे, हमारे पादप भी इससे अछूते नहीं रहेंगे ।
हमने अपना मस्तिष्क का विकास, हमने अपना व्यावहारिक विकास, अपना सांस्कृतिक विकास किया है, तो हमें कम से कम एक ऐसा सल्यूशन निकालना चाहिए,
जो हमारी पृथ्वी और हमारे पर्यावरण के लिए हितकर हो ।
और वह सल्यूशन ऐसा हो जिसके साथ संपूर्ण विश्व एक साथ खड़ा हो ।
जैसे आजकल कोरोना काल में विभिन्न देशों में लगातार कई महीनों से लाॅकडाउन लागू है, जिसकी वजह से हमारे भारत की भी कई नदियां जैसे गंगा नदी जो ज्यादा प्रदूषित थी, आज क्यों स्वच्छ है, क्योंकि हमारे जो क्रियाकलाप हैं वह नहीं हो पा रहे हैं - उद्योग-धंधे सब बंद है , वहां से निकलने वाला अपशिष्ट पदार्थ नदियों में नहीं जा पा रहा है । और मानवीय प्रदूषण भी नहीं हो पा रहा है ।
जो नदी करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी पूरी तरह साफ नहीं हो पायी थी आज वह केवल लाॅकडाउन के कारण ही स्वच्छ हो पायी है ।
हमारे मोटर वाहन सड़कों पर नहीं दौड़े जिसके कारण प्रदूषण का स्तर लगातार गिरता जा रहा है । मीडिया में ये खबरें आयीं,कि उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, बिजनौर, बिहार का सीतामढ़ी, पंजाब का जालंधर,पठानकोट, वहां से हिमालय की चोटियां साफ नजर आने लगी हैं। वहां के लोगों का कहना है, कि हमारे जीवन में ऐसा कभी नहीं हुआ जो आज हो रहा है, हमने इतना साफ और स्वच्छ वातावरण पहले कभी नहीं देखा । उनका कहना था कि उन्होंने अपने घर से हिमालय को कभी नहीं देखा जो यहां से 200 से 300 किलोमीटर दूर है ।
कहने का आशय है, कि जब हमारा पर्यावरण शुद्ध होगा, साफ होगा, स्वच्छ होगा तो हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ वातावरण के रूप में उन्हें एक
अनमोल तोहफ़ा दे जायेंगे ।।
"मुस्कुराता पर्यावरण - खिलखिलाता पर्यावरण"
"स्वच्छ वातावरण - सौम्य वातावरण"
- आनन्द कुमार
Humbles.in
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