आह ! यह कैसा विषाद
मन हो उठता क्लांत
इस करुणा कलित हृदय में
आज यह कैसा अवसाद ?
अचानक हृदय हुआ अधीर
कैसी है, ये मन की पीर
सुनकर उसकी करुण पुकार
आंखों से निकले अश्रु अपार ।
मलयज मलयज न बन पायी
इस करुणित हृदय को,
न कोई लहर भायी
शून्य में फिरता रहा,
न कोई शीतकर नजर आयी !
हृदय में खोजता रहा अन्तर्पथ
न मिला कोई रमणीय प्रदेश
शाश्वत बहता रहा विषाद
न पाया हसित् मनोदेश ।
फिर तिमिर में फिरा मैं
न अधरों पर मुस्कान आयी
शशि के सौंदर्य को देखता रहा
पर इस क्षुभित मन ने मुकुर में
न सुष्मित सूरत दिखायी ।
मन जा पहुंचा व्योंमवीथिका में
सोंचा सुरेसचाप के वर्ण देख लूं
तिमिरांचल ने भी क्या खूब करतूत दिखाई
थकित हुआ तृषित मन न हृदय ने तृप्ति पायी ।
वापस लौटा इस भू पर
सजे देखे नीहार आवरण
भटका मन इधर-उधर
न ओसकन भायी ।
सोंचा ये संसृति के आंसू हैं
संसृति लेखा ने न इस पर नजर दौड़ायी
संसृति के नयनों से बह रहे अश्रु
संसृति ईश ने न संसृति पर
दुकुल चादर उढ़ाई ।
आगे बढ़ा क्षुब्ध मन
वहां मधुपुरी नजर आयी
सोंचा ज्योतिवंत प्रभु से विनय करुं
पर वहां भी न घनसार की सुगंध भायी ।
भुवि पर भटकता रहा क्षुब्ध मन
हृदय को न श्रांति मिल पायी
जो संसृति को अमृत-पान करा सके
न ऐसी कीरतिबेलि की सुधि पायी ।
विश्व-हृदय को क्षत-विच्क्षत कर रहे पन्नग
पृथ्वी पर बढ़ रहे व्यभिचार
इस करुणित हृदय ने की
परमात्म-हृदय से पुकार ।
सत्य-अहिंसा से पुलकित करो हृदय
परमात्म-हृदय ने दिए निर्देश
संग में मलयज के सजल संदेश ।
पुलकित हुआ करुणित हृदय
सूर्य किरणों ने सूर्य-रिपु पर विजय पायी
उत्ताल हुईं हृदय की लहरें
अम्बर ने शुचि सुबह पायी ।
सूर्य का देख छविजाल
तरनि-पुत्रि मुसकाई
इन ज्योतिवाह किरणों से
भवक्लांत हृदय पर
आनन्द-प्रद प्रेरणा आयी ।।
-आनन्द कुमार
Humbles.in
( "क्षितिज - उदीयमान साहित्यकार" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित "चित्रगुप्त प्रकाशन" जीवन नगर, नई दिल्ली )
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