पिय मिलन श्रृंगार दर्पन , नदी की चंचलता धारा शाश्वत, सुष्मित हृदय जीवन शाश्वत, कंठ का स्वर पक्षी का कलरव, सूर्य किरण उजला मन, नौका विहार जल तरंग, दीपक की लौ प्रकाशित मन, सत्कर्म जीवन धर्म, सुगंध हारसिंगार का पुष्प । - आनन्द कुमार Humbles.in
उन बन्धनों को
तोड़ना मुश्किल नहीं होता,
जो झूठे होते हैं,
चाहें वो प्रेम के हों ,
या हृदय के जज़्बात के ।
ये तो मोम के बन्धन होते हैं,
जो थोड़ी सी आँच से ही
पिघल जाते हैं ।
उन बन्धनों को
तोड़ना मुश्किल होता है,
जो सच्चे होते हैं ,
चाहें वो हृदय के जज़्बात के हों ,
या प्रेम की सौगात के ।
ये बन्धन तो सागर की गहराई
जैसे होते हैं ,
जिनकी थाह भी लगाना
मुश्किल होता है ।।
– आनन्द कुमार
("धूप के दीप" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित )
श्री सत्यम प्रकाशन झुंझुनूं राजस्थान
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