पिय मिलन श्रृंगार दर्पन , नदी की चंचलता धारा शाश्वत, सुष्मित हृदय जीवन शाश्वत, कंठ का स्वर पक्षी का कलरव, सूर्य किरण उजला मन, नौका विहार जल तरंग, दीपक की लौ प्रकाशित मन, सत्कर्म जीवन धर्म, सुगंध हारसिंगार का पुष्प । - आनन्द कुमार Humbles.in
हृदय में धड़कन की तरह
धड़कती हो तुम
रिमझिम-रिमझिम सावन की तरह
बरसती हो तुम
हृदय की सौगात में पुष्पों की तरह
सुगन्धित हो तुम
मलयज को सुगन्धित करने वाली
पारिजात हो तुम
खिंचे चले आते हैं भॅंवरे
ऐसी मधुकोश हो तुम
मन्दिर के दीपक की लौ की तरह
पवित्र हो तुम
मन्दिरों के शंखों की तरह
कर्णप्रिय हो तुम
नदियों की धारा की तरह
शाश्वत हो तुम
झरनों में कल-कल की तरह
प्रतिध्वनि हो तुम
सितारों के मध्य शशि की तरह
सुशोभित हो तुम ।
"आनन्द" सॅंवारे दिन-रात तुम्हें
ऐसा कवित्व हो तुम ।।
- आनन्द कुमार
Humbles.in
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