पिय मिलन श्रृंगार दर्पन , नदी की चंचलता धारा शाश्वत, सुष्मित हृदय जीवन शाश्वत, कंठ का स्वर पक्षी का कलरव, सूर्य किरण उजला मन, नौका विहार जल तरंग, दीपक की लौ प्रकाशित मन, सत्कर्म जीवन धर्म, सुगंध हारसिंगार का पुष्प । - आनन्द कुमार Humbles.in
तुम्हारे किन-किन रूपों को
आज मैं लिखूॅं माॅं,
ममतामयी हो,
तुम करुणामयी हो
तुम्हारी चरण-रज
आज शीश माथे धरूॅं माॅं ।
ईश्वर का वरदान हो तुम
वात्सल्य का भण्डार हो तुम,
अपने स्नेहाशीष हाथों से
जब मेरा शीश सहलाती हो माॅं,
मैं अपनी हर पीड़ा,हर दुःख
क्षणिक भूल जाता हूॅं माॅं ।
मैंने ईश्वर को तो नहीं देखा,
परन्तु मुझे विश्वास है माॅं,
वो तुम्हारे जैसा ही दिखता होगा,
मेरे कुछ बोलने से पहले,
मेरी इच्छाओं को तुम
कैसे जान जाती हो माॅं ।
बचपन में मुझे
अपने हाथों से खिलाती थी माॅं,
जरा हिचकी अगर आ जाती
तो जल्द ही पानी पिलाकर
पीठ सहलाती थी माॅं ।
ऋण तुम्हारा
न कभी चुका पाऊॅंगा माॅं
ख्वाहिश है, कि तेरे लिये
कुछ कर पाऊॅंगा माॅं ,
मेरी सबसे भोली माॅं
मेरी सबसे प्यारी माॅं ।।
- आनन्द कुमार
Humbles.in
("मेरी माॅं" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित )
"श्री सत्यम प्रकाशन" झुंझुनूं (राजस्थान)
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