हे ! वीणावादिनी वर दे,
इस विचलित मन में सानंद भर दे,
आत्मा का परमात्मा से मिलन करा दे,
हे ! वीणावादिनी वर दे ।
है मनुष्य विनाश की कगार पर खड़ा,
इसके सिर पर जरा अपना हाथ फिरा,
इसके जीवन में खुशियाॅं भर दे,
हे ! वीणावादिनी वर दे ।
मनुष्य को उसके कर्मों का फल दे,
भटके हुए को पथ दिखा दे,
हे ! वीणावादिनी वर दे ।
इसकी सुअभिलाषाओं को पूर्ण कर दे,
इसका जग जीवन सुफल बना दे,
हे ! वीणावादिनी वर दे ।
हम तो जीवन का उल्लास खो बैठे,
अपना स्वानन्द खो बैठे,
हमारे जीवन को खुशियों से भर दे,
हे ! वीणावादिनी वर दे ।
हे ! माते भारत के वो स्वर्णिम दिन ला दे,
इसको फिर से सोने की चिड़िया बना दे,
हे ! वीणावादिनी वर दे ।
जिस पावन पृथ्वी पर जन्म लिया,
उसी पर न्योछावर कर दे,
हे ! जगत जननि वर दे,
हे ! वीणावादिनी वर दे ।
- आनन्द कुमार
Humbles.in
("धूप के दीप" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित )
श्री सत्यम प्रकाशन झुंझुनूं राजस्थान
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