पिय मिलन श्रृंगार दर्पन , नदी की चंचलता धारा शाश्वत, सुष्मित हृदय जीवन शाश्वत, कंठ का स्वर पक्षी का कलरव, सूर्य किरण उजला मन, नौका विहार जल तरंग, दीपक की लौ प्रकाशित मन, सत्कर्म जीवन धर्म, सुगंध हारसिंगार का पुष्प । - आनन्द कुमार Humbles.in
माँ माँ सभी कहें
सम्मान सभी देते नहीं’ ,
यदि करें सम्मान सभी
वृद्धाश्रम कभी बने नहीं ।। 1
माँ के मातृत्व को पहचानो सभी
दुआओं की टोकरी हैं ये , उम्र से डोकरी हैं ये
इनके स्नेहाशीष के लिए
अपने आँचल फैलाओ सभी ।। 2
यदि छोंड़ दोगे तुम इन्हें
बेबसी और लाचारी में ,
दर – दर भटकेंगी ये
शर्म करो खुद्दारी में ।। 3
‘नल पे नल लगा होता’
ये कहावत तो खूब सुनी होगी ,
जब तुम भी प्रताड़ित किए जाओगे
सोंचो तब तुम्हें कितनी पीड़ा होगी ।। 4
जब तुम भी बूढ़े हो जाओगे
कालचक्र में आओगे ,
संततियाँ चलेंगी तुम्हारे पदचिन्हो पर ,
अपने आप को इक दिन वृद्धाश्रम में पाओगे ।। 5
- आनन्द कुमार
Humbles.in
("माॅं" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित )
साहित्य पीडिया पब्लिशिंग नोएडा
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