पिय मिलन श्रृंगार दर्पन , नदी की चंचलता धारा शाश्वत, सुष्मित हृदय जीवन शाश्वत, कंठ का स्वर पक्षी का कलरव, सूर्य किरण उजला मन, नौका विहार जल तरंग, दीपक की लौ प्रकाशित मन, सत्कर्म जीवन धर्म, सुगंध हारसिंगार का पुष्प । - आनन्द कुमार Humbles.in
तितली रानी, तितली रानी तुम तो हो बड़ी सयानी । मैं दौड़ूं तो तुम उड़ जातीं, ना जाने कितने खेल खिलातीं ।। तुम तो हो मित्र हमारी, फिर हमें देखकर क्यों उड़ जातीं ? आओ प्यारी तितली आओ, पुष्पों पर तुम मॅंडराओ । प्रकृति ने ना जाने कितने रंग दिये उन रंगों को हमें दिखलाओ, आओ प्यारी तितली आओ ।। आओ हम सब मिलकर खेलें, जीवन के पलों का " आनन्द " ले लें । कहीं ये बचपन बीत न जाए, तुम्हारा साथ छूट न जाये आओ हम सब मिलकर गाएं, ये सुहाने बसंत सुहाये ।। पीली सरसों पर तुम मितलातीं तरह-तरह के राग सुनातीं । तुम्हें देख अलसी मुस्कायी, मेरे आंगन " तितली रानी " आई तुम्हें देख मन मेरा हर्षित होता, कविता करने को मन करता ।। - आनन्द कुमार Humbles.in