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दिसंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज्ञान

 ज्ञान एक ऐसा आभूषण है  जो पहनता है  दूर तलक जगमगाता है ।।       - आनन्द कुमार 

तितली रानी

तितली रानी, तितली रानी तुम तो हो बड़ी सयानी । मैं दौड़ूं तो तुम उड़ जातीं, ना जाने कितने खेल खिलातीं ।। तुम तो हो मित्र हमारी, फिर हमें देखकर  क्यों उड़ जातीं ?  आओ प्यारी तितली आओ,  पुष्पों पर तुम मॅंडराओ ।   प्रकृति ने ना जाने कितने रंग दिये  उन रंगों को हमें दिखलाओ, आओ प्यारी तितली आओ ।।  आओ हम सब मिलकर खेलें, जीवन के पलों का " आनन्द " ले लें । कहीं ये बचपन बीत न जाए,  तुम्हारा साथ छूट न जाये आओ हम सब मिलकर गाएं,  ये सुहाने बसंत सुहाये ।।  पीली सरसों पर तुम मितलातीं  तरह-तरह के राग सुनातीं ।  तुम्हें देख अलसी मुस्कायी, मेरे आंगन " तितली रानी " आई  तुम्हें देख मन मेरा हर्षित होता,  कविता करने को मन करता ।।      - आनन्द कुमार       Humbles.in

भॅंवरा जीवन

भॅंवरा फूलों पर मंडरा कर उसका रस ले जाता है, घूम-घाम कर खेल-खाल कर गुन-गुन-गुन गुंजन कर के, सबका मन हर ले जाता है । कली-कली पर, बैठ-बैठ कर मधु की बूॅंदों को चुनता जाता है, वह श्याम रंग, वह प्रेम प्रसंग, गुन-गुन कर के कलियों पर, वह प्रेम स्वरों में कविता करता जाता है । वह दूर-दूर तक, पुष्पों के पीलाम्बर क्षितिज तक उड़ता जाता है, वह स्वयं खुश होकर, हमको खुशियाॅं दे जाता है । कभी भी हताश मत होना जीवन में खुश रहना खुशियाॅं देना हर पल, ऐसा संगीत गुनगुनाता जाता है । वह अपने असीम स्वरों में जीवन के हर एक मोड़ में " आनन्द " विभोर होकर, जीवन जीने का सजल संदेश दे जाता है ।   - आनन्द कुमार      Humbles.in ( "धूप के दीप" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित ) श्री सत्यम प्रकाशन झुंझुनूं राजस्थान.

कैसे होता है वाइरसों द्वारा कैंसर : Viral Oncogenes And Proto-Oncogenes

  वाइरल ओंकोजीन्स एवं प्रोटोओंकोजीन्स : (Viral Oncogenes And Proto-Oncogenes)  कुछ Virus जैसे - Hepatitis B- virus, Herpes virus, Papilloma virus का DNA मनुष्य या किसी भी पोषक के DNA से जुड़ जाता है, और पोषक के कोशिका ( Host cell ) विभाजन के साथ गुणन करता है । Viral DNA में लगभग 20 cancer उत्पन्न करने वाले gene होते हैं इन्हें Viral Oncogenes कहते हैं । इन genes के समरूप genes पोषक कोशिकाओं में पाये जाते हैं जिन्हें Proto-Oncogenes कहते हैं । ये genes कोशिका वृद्धि एवं कोशिका विभाजन (cell division) को प्रोत्साहित करने वाले प्रोटीन (Protien) उत्पन्न करते हैं । जब oncogenic virus का DNA इन Proto-Oncogenes के समीप निवेषित (insert) हो जाता है, तब यह Proto-Oncogenes को सक्रिय कर देता है, जिससे पोषक कोशिका में अनियंत्रित विभाजन तीव्र गति से शुरू हो जाता है , और सामान्य कोशिका कैंसर कोशिका (cancer cell) में बदल जाती है । Virus की उपस्थिति के कारण पोषक कोशिका के गुणसूत्रों ( chromosomes ) के टूटने की घटनाएं बढ़ जाती हैं , जिससे कभी- कभी निष्क्रिय Proto-Oncogenes सक्रिय हो जाते हैं,

बया पक्षी - एक इन्जीनियर पक्षी

सामान्य नाम - बया अंग्रेजी नाम - Weaver Bird अन्य नाम- बुनकर पक्षी, इन्जीनियर पक्षी  Classification - Kingdom - Animalia Phylum - Chordata Class - Aves Genus - Plosius Species - philippines कैसा होता है बया पक्षी - बया, गौरैया की तरह दिखने वाला एक पक्षी है , जो हल्के पीले रंग का होता है, यह बुनकर प्रजाति का माना जाता है । अद्भुत घोंसलों का निर्माण - यह नन्हा सा पक्षी घास के छोटे-छोटे तिनको और पत्तियों को बुनकर लटकता हुआ बेहद ही खूबसूरत घोंसले का निर्माण करता है । इसलिए इसे बुनकर पक्षी (Weaver Bird) भी कहा जाता है ।  ज्यादातर कहां बनाते हैं घोंसले - इनके अधिकतर घोंसले हमने खजूर के पेड़ों पर देखें हैं,जो अद्भुत कारीगरी का नमूना पेश करते हैं । शायद इनके घोंसलों का निर्माण नर पक्षियों द्वारा किया जाता है । इन्हें आप पक्षियों का इंजीनियर कहें तो अतिश्योक्ति न होगी ।  यह समूह में रहना पसन्द करते हैैं , क्योंकि इसकी वजह से इसके बच्चों को परभक्षियों से सुरक्षा प्रदान होती है । बया प्रजाति के पक्षी पूरे भारतीय उपमहादीप और दक्षिण पूर्वी एशिया में देखने को मिलते है। इनका स्वर चीं चीं चीं के रूप

एंडेंजर्ड एनिमल एवं हमारी प्राकृतिक संपदा का विनाश

एंडेंजर्ड एनीमल - प्राय: एंडेंजर्ड एनिमल उन्हें कहते हैं, जो विलुप्ति की कगार पर हैं , अथवा विलुप्त हो चुके हैं , एवं जो जंतु एंडेंजर्ड होते हैं उनका "रेड डाटा बुक" नामक पुस्तक में समावेश किया जाता है । एनिमल्स के एंडेंजर्ड होने में सबसे बड़ा हाथ मानव का ही है जो अपने आमोद प्रमोद के लिए वन्य प्राणियों को क्षति पहुंचाता हैं ।  वन्य प्राणियों के एंडेंजर्ड होने के कुछ कारण निम्नलिखित हैं - Like as - प्रतिकूल वातावरण, रासायनिक हस्तक्षेप और शिकार । उपर्युक्त में से एनिमल्स के एंडेंजर्ड होने में सबसे बड़ा हाथ शिकार का ही है ।  भारत में सबसे ज्यादा एनिमल्स एंडेंजर्ड होने का कारण शिकार ही है, जो हम अब इस अवस्था तक पहुंच चुके हैं । Means to say that - प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने से इकोसिस्टम पर बुरा प्रभाव पड़ा है, और हमारे सामने अनेक समस्याएं आ खड़ी हुई हैं । यह सर्व ज्ञात है, कि हमारे देश में प्राचीन काल से ही शिकार एक आमोद प्रमोद का एकमात्र साधन रहा है, कभी मनुष्य ने अपने हित के लिए शिकार किये । Like as- भोजन, तन ढकने के लिए और सजावटी वस्तुओं के लिए और कभी सिर्फ अपना आनंद प्राप

उन्हें प्रणाम

  हे ! स्वतंत्र देश के वासी , निश्छल निष्पाप हृदय राशी जो दे गये तुम्हें अमृत दान , कर जोड़ करो उन्हें प्रणाम । जो मिट गये इस भू पर आजादी की करके पुकार गुणगान करो तुम उनका करके जयकार ,  हृदय में रखो उनके लिये मान कर जोड़ करो उन्हें प्रणाम । ‘गाँधी’ , टैगोर और बोस , आजादी का करके जयघोष जो दे गये हमे , अमूल्य रत्न करके ‘सत्य-अहिंसा’ का प्रसंग , हमको उन पर है , अभिमान कर जोड़ कर रहे उन्हें प्रणाम । वो आजादी के परवाने भारत माँ के दीवाने जिन्होंने आजादी के नाम पर रख लिया अपना नाम कर जोड़ कर रहे उन्हें प्रणाम । उन ‘ शहीद-ए-आजमों ’ का सर्वत्र हो रहा जयघोष , जो दे गये दिव्य-अलौकिक सन्देश , जिनका रविमण्डल सा विखर रहा प्रकाश उनको नमन करने की अभिलाष , जो भू पर अमर कर गये स्वनाम कर जोड़ कर रहे उन्हें प्रणाम ।। – आनन्द कुमार    Humbles.in

कह दो उनसे कि...

 

पर्यावरण : स्वच्छता एवं प्रदूषण

"पर्यावरण : परि + आवरण"  अर्थात-  "हमारे चारों ओर का वातावरण"   "आशय यह है , कि हमारे आस-पास जो कुछ भी उपस्थित है , वह पर्यावरण है ।" for e.g.- पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, विभिन्न प्रकार की गैसें,भूमि एवं इस पर रहने वाले जीव पर्यावरण में सम्मिलित होते हैं । सजीव हों, निर्जीव वस्तुएं हों, छोटे जीव, बड़े जीव, जल,वायु,मिटटी,खेत-खलिहान,पशु-पक्षी, कहने का तात्पर्य यह है, कि चाहें वह जैव वातावरण हो अथवा अजैव वातावरण हो , यह सब हमारे पर्यावरण के अन्तर्गत ही आते हैं । पर्यावरण सभी जैविक तथा अजैविक अवयवों का मिश्रण होता है, जो जीवों को चारों ओर से प्रभावित करता है, जिस प्रकार पर्यावरण जीवो को प्रभावित करता है, उसी प्रकार जीव भी अपने पर्यावरण को प्रभावित करते हैं । परन्तु अन्य सभी जीवों की अपेक्षा मनुष्य ने ही पर्यावरण पर नियंत्रण कर उसे अपने अनुकूल परिवर्तित करने में सर्वाधिक सफलता पाई है ।  इस भूमंडल के प्रत्येक कोने में आधुनिक मानव (होमो सैपियंस सैपियंस) ने प्राकृतिक पादप समुदायों को नष्ट करके उन स्थानों को अपने हित को ध्यान में रखते हुए दूसरे पौधे लगाए, उसने शुष्

ज़िन्दगी- एक : कर्म-पथ

चल पड़ी जिस तरफ जिन्दगी मन्थर-मन्थर धूमिल पथ पर कुछ फिसलती कुछ सम्भलती मुट्ठी से जैसे रेत निकलती । सूर्य धुँधला सा, छिपा जा रहा बादलों में सिमटती जा रही है रोशनी आसमाँ मे पग-पग बढ़ रहा पथिक-पथ पर सोंचता, कैसी है, ये जिन्दगी कश्मकश में । सम्भल के चलना इन राहों में लग जायें न काँटे कहीं पाँव में घाव हो जिस्म में माथे पे सिकन न जाना ऐसी फिजाओं में । गरज रहे बादल, इन काली घटाओं में सिहर उठता बदन, इन ठण्डी हवाओं में घिर रहे बादल , घन की ओर से , कैसे पहुँचेंगे परिंदे , आशियानों में । हे ! मनुज तू बिघ्न की परवाह न कर हो अडिग सामना कर, करेगी आत्मसमर्पण प्रकृति भी, सुष्मित होकर, तेरी दुर्लभ मेहनत पर । आनन्दित होगा हृदय जब पूर्ण होगी अभिलाषा जिस पर चलेगा, “जीवन-रथ” वो है- “जिन्दगी- एक : कर्म-पथ” ।।     – आनन्द कुमार      Humbles.in ("धूप के दीप" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित ) श्री सत्यम प्रकाशन झुंझुनूं राजस्थान .

दिल-ए-नादां

 

अरुणाभा : एक बेटी के प्रति पिता का हृदय

वह सुन्दर सी, कोमल हाथों में जब मेरे आयी, पुलकित हुआ हृदय मेरा जब देखा चेहरे पर लालिमा छायी । प्यारा सा सुस्मित चेहरा लग रहा हो जैसे चन्द्रानन उत्ताल हुईं हृदय की लहरें जब देखे उसके कोमल नयन । बज रहीं बधाइयाँ ढेरों घर-उपवन मे खुशहाली छायी बाबुल सबको कहते-फिरते मेरे आँगन रानी बिटिया आयी । प्रफुल्लित हो उठा हृदय मेरा जब उसके मुख से निकला पहला शब्द लगा जैसे कि पुष्पों ने पंखुड़ि-पट खोले कर गया वो सबको नि:शब्द । तब विचार मन-मस्तिष्क मे कौंध गया क्यों बेटी का जन्म नहीं भाता इस दिव्य-रत्न अवतारण का क्यों जग मे सम्मान नहीं होता ? क्या जग को मिथ्या समझूँ ! या समझूँ उस सच्चाई को दिया अनुपम वरदान विधाता ने क्यों न स्नेह करूँ “ अरूणाभा ” को ? कम नहीं हैं बेटियाँ किसी से चाहों तो इतिहास के पन्नों को पलट देखो गार्गी, अपाला और रानी लक्ष्मीबाई जग में जिसने अपनी पहचान बनाई । आधुनिकता की बात करें तो बेटियों ने परचम लहराया डॉक्टर, इंजीनियर और रेसलर बनकर देश का सम्मान बढ़ाया । इसलिए निवेदन है सबसे इस कुसुम-कलिका को विकसने तो दो इसकी सुगंधित “अरूण-कान्ति” को सर्वत्र बिखरने तो दो ।। ( अरूणाभा-लाल क

कहानी : नयी मेहमान

बात जून 2013 की है, जब मैं एग्जाम खत्म होने के बाद गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने के लिए घर पर आया हुआ था ।   लगभग एक वर्ष होने को था, तब से मैंने कुछ भी नहीं लिखा था , इससे पहले मैंने कुछ कवितायें और कहानियाँ लिखीं थीं, लेकिन उस दिन मैंने ठान ही लिया था,  कि मैं आज अवश्य ही कुछ न कुछ लिखूँगा ।  मैंने पेन और कॉपी ली, और छत पर आ गया । मैं पश्चिम दिशा की ओर बैठ गया, सूर्य बिल्कुल हमारे सामने था, जो कुछ समय पश्चात अस्त होने वाला था । जून का महीना था, हवा मध्यम गति से चल रही थी, जो ठण्डी और सुहावनी थी । आस-पास का वातावरण शान्त था ।  मैं अपने साथ एक पेज भी लाया था, जिस पर एक अधूरी गद्य रचना थी, सोचा कि आज इसे अवश्य पूरा कर लूँगा, मैंने पेन उठाया और उस पर लिखने के लिए कुछ सोचने लगा, परन्तु कुछ शब्द नहीं बन पा रहे थे, कभी पेन के ऊपरी हिस्से को दाँँतों के बीच में रखता और कभी अपने मोबाइल फोन को अंगुलियों के सहारे से उसे वृत्ताकार घुमाता, परन्तु कुछ लिखने के बजाय, मैं मंत्रमुग्ध सा एकटक सामने की ओर देखता रहता ! और देखता क्यूँ नहीं, सामने एक ऐसी विषय वस्तु ही   थी, जो हमारा ध्यान अपनी ओ

कहानी : चल पड़ी जिस तरफ ज़िन्दगी(सूरज की एक नयी सुबह)

वह पूरब की अंधेरी गलियों से होता हुआ, हमारे पश्चिमी मोहल्ले की गली मे उसने प्रवेश किया, जो बिजली की रोशनी से जगमगा रही थी । अचानक रोशनी युक्त गली के चौराहे पर लड़खड़ाया । गली के कुत्ते सावधान हो गए और उन्होंने भौंकने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया, लेकिन वही जाना पहचाना चेहरा सामने था, सोंचा-ये तो वही है, जो अक्सर इस गली के चौराहे पर आकर लड़खड़ाता है । कुत्तों ने उस मदमस्त युवक पर स्नेह प्रकट किया और अपनी दुम हिलाते हुये कुछ दूरी तक उसके पीछे-पीछे चले । आज वह फिर घर में देर-रात पहुँचा था, रोज की तरह उसकी बूढ़ी माँ जो कमजोर और बीमार थी, बेटे का इन्तजार करते-करते सो चुकी थी । माँ को बिना जगाये ही, वह रसोईं में जा पहुँचा । रसोईं में खाने के लिए आज कुछ भी नहीं था । वह रसोईं से बाहर आया और आँगन में पड़ी हुई चारपाई पर लेटकर सो गया। सुबह के नौ बज चुके थे, लेकिन साहबजादे अभी भी सपनों के संसार में खोये हुए सो रहे थे, जब सूर्य की धूप में थोड़ी सी तपन हुई, तब ‘सूरज’ ने आँखे खोलीं । सिर पर बोझ सा महसूस हो रहा था, माँ से आँख मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी,फिर कुछ सोंचा और माँ की चारपाई के प

फीफा विश्वकप 2022 फाइनल - कतर(दोहा) - FIFA -Stands for Fédération Internationale de Football Association (French)

  फीफा विश्वकप 2022 फाइनल : कतर ⚽ FIFA -Stands for Fédération Internationale de Football Association (French ) ( फेडरेशन इन्टरनेशनल डी फुटबॉल एसोसिएशन ) फाइनल की टीमें - अर्जेंटीना v/s फ्रांस लियोनेल मेसी (कप्तान- अर्जेंटीना) ह्यूगो लाॅरिस (कप्तान- फ्रांस)         महामुकाबला : ⚽ अतिरिक्त समय में अर्जेंटीना और फ्रांस की टीमें 3-3 की बराबरी पर थीं ।   3-3 की बराबरी के बाद पेनाल्टी शूटआउट में फ्रांस को 4-2 से हराकर मेसी (अर्जेंटीना) ने इतिहास रच दिया और तोहफे के रुप में अर्जेंटीना को तीसरा विश्व कप जीत कर दे दिया ।  अर्जेंटीना 36 साल बाद एक बार फिर फीफा विश्व कप चैंपियन बन गया ।  अर्जेंटीना ने इससे पहले 1986 में माराडोना की कप्तानी में यह ट्राफी जीती थी ।  अर्जेंटीना ने कुल खिताब अपने नाम किये - (तीन)- 1986, 1978 और 2022 (कतर)  ब्राजील ने 5 बार   इटली ने 4 बार   जर्मनी ने 4 बार खिताब जीते । बहुत ही रोमांचक रहा मुकाबला - ⚽  23वां मिनट -अर्जेंटीना का खाता खुला कप्तान मेसी द्वारा पेनाल्टी पर गोल दागा गया ।  36वां मिनट - अर्जेंटीना का दूसरा गोल एंजेल डी मारिया द्वारा दागा गया । अर्जेंटीना क

जीवन

 

सरीसृप प्राणी

 

तमन्ना

 

सच कहता हूॅं

 

होली : हाइकु

 

वसंत : हाइकु

 

रूह

 

संघ काॅर्डेटा

 

मछलियों में प्रवसन

 

मोहब्बत की कीमत

 

आओ मिलकर दीप जलायें

 

कुछ लफ्ज़ तेरी यादों के

 

माॅं

  माँ माँ सभी कहें सम्मान सभी देते नहीं’ , यदि करें सम्मान सभी वृद्धाश्रम कभी बने नहीं ।। 1 माँ के मातृत्व को पहचानो सभी दुआओं की टोकरी हैं ये , उम्र से डोकरी हैं ये इनके स्नेहाशीष के लिए अपने आँचल फैलाओ सभी ।। 2 यदि छोंड़ दोगे तुम इन्हें बेबसी और लाचारी में , दर – दर भटकेंगी ये शर्म करो खुद्दारी में ।। 3 ‘नल पे नल लगा होता’ ये कहावत तो खूब सुनी होगी , जब तुम भी प्रताड़ित किए जाओगे सोंचो तब तुम्हें कितनी पीड़ा होगी ।। 4 जब तुम भी बूढ़े हो जाओगे कालचक्र में आओगे , संततियाँ चलेंगी तुम्हारे पदचिन्हो पर , अपने आप को इक दिन वृद्धाश्रम में पाओगे ।। 5 - आनन्द कुमार Humbles.in ("माॅं" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित ) साहित्य पीडिया पब्लिशिंग नोएडा

बेवफ़ा

भंवरा

 

दोस्ती

 

पहला झूठ

 

सच्ची मोहब्बत - प्रेम

 इश्क़ का दीदार और प्यार पर ऐतवार अब न रहा , उलझनों के साये और बेसुध ज़िन्दगी छोड़ दी मैंने , टूटते तारों को देखकर  उनकी सलामती की दुआ मांगना  ये पागलपन  अब न रहा । जो रंजिशें की थीं उनके लिए अपने यारों से , अपने परिवारों से  वो बिखरी ज़िंदगी को आज मैं संवार आया ,  इश्क़ लड़ाना , दीदार करना ,  वो चिट्ठी लिखना  और चैट करना      फुजूल समझने लगा हूॅं  वो सारे ख़त वो सारी यादें आज श्मशान में छोंड़ आया । मोहब्बत अब वो मोहब्बत न रही व्यापार हो गया  जिसने अच्छे से किया वह मालामाल हो गया , वो लिपिस्टिक  अरे वो पाउडर दिला दो न  अच्छे कपड़े वो ब्रांडेड घड़ी  हाथों पर सजा दो ना  जिस रईसजादे के पास यह कोकिल रही वह कंगाल हो गया । सच्ची मोहब्बत तो लैला-मजनू शिरीन-फरहाद की सुनी है  न जमाने का खौफ न कुछ खो जाने का डर न कुछ पाने की लालसा बस वो बहते गये प्रेम में और  भीगते गये प्रेम में , प्रेम क्या होता है ये राधा-कृष्ण ने बताया मीरा हो बावरी  प्रेम को गाया  राणा ने विष दिया जान अमृत पिया ऐसा सुनने में आया ।। - आनन्द कुमार   Humbles.in

रात तू क्यों उदास है

 

अब बचपन बहुत याद आता है

 

जीव विज्ञान : महत्वपूर्ण बिंदु

 

HIV: एक दिसम्बर

 

ऐ वक्त !

 

ज़ख्म -ए- मोहब्बत