जब शिक्षण की बात आती है , तब सबसे पहले दिमाग में एक बात घूमती है , कि ऐसी कौन सी शिक्षण विधि अपनायी जाये, जिससे छात्रों को अध्यापकों द्वारा पढ़ाया गया पाठ तुरन्त ही समझ में आ जाये ।
हमें एक ऐसी शिक्षण विधि अपनानी होगी, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक हो । शिक्षण के उद्देश्यों की सफलता को उच्चतम ऊंचाई तक पहुंचाने में शिक्षण विधियों का महत्वपूर्ण योगदान है ।
शिक्षण कार्य की आधी सफलता शिक्षण विधियों में निहित है । समुचित शिक्षण विधियों के बिना शिक्षण उद्देश्यों की सफलता प्राप्ति उसी प्रकार है, जिस प्रकार एक बिना पंखों का पक्षी उड़ तो नहीं सकता परन्तु वह फड़फड़ाता रहता है , ठीक इसी प्रकार अध्यापक भी वगैर किसी शिक्षण विधि के, वगैर किसी पाठ-योजना के पढ़ाता है , तो वह निश्चित ही अपनी ऊर्जा को फालतू में व्यय करता है , और उसे सही मायनों में परिवर्तित करने में असफल रहता है ।
शिक्षण विधि की सफलता शिक्षक , विद्यार्थी ,पाठ्यवस्तु पर निर्भर करती है । छात्र को सीखने के लिए शिक्षक का ज्ञान उतना महत्वपूर्ण नहीं है , जितनी कि शिक्षक द्वारा प्रयुक्त शिक्षण विधि ।
क्योंकि यदि शिक्षक ने छात्रों के अनुरूप शिक्षण विधि का प्रयोग नहीं किया , तो पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती । सभी छात्रों का मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर एक समान ना होने के कारण शिक्षक को सर्वप्रथम छात्रों के बौद्धिक स्तर को समझकर उसके अनुरूप ही शिक्षण विधि का प्रयोग करना चाहिए ।
ब्राउडी के अनुसार-
शिक्षा नीतियों का संबंध एवं क्षेत्र अत्यंत ही व्यापक है , शिक्षण व्यूह रचनाओं में विभिन्न शिक्षण विधियां , रीतियां तथा युक्तियां सम्मिलित हैं । शिक्षण विधि एक प्रकार की कला है , जो शिक्षक के व्यक्तित्व पर निर्भर करती हैं । यद्यपि शिक्षण की अनेक परम्परागत विधियां प्रचलित हैं , फिर भी शिक्षक के विवेक , छात्रों की क्षमता , पाठ्यवस्तु तथा शिक्षण परिस्थितियों द्वारा निर्धारित होती है ।
- आनन्द कुमार
Humbles.in
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें