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जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज्ञान

 ज्ञान एक ऐसा आभूषण है  जो पहनता है  दूर तलक जगमगाता है ।।       - आनन्द कुमार 

Leaves

An Organ Of Limited Growth Develope Laterally  From Superficial Tissues Of Stem/ Shoots.   Bearing Of Leaves  :   Couline Leaves - The Leaves Are Found Only At The Apex (Tip)  Of The Main Stem. e.g.- Palm 🌴 And Cycas . Couline And Ramal - The Leaves Are Found On The Main Axis (Stem) As Well As It's Lateral Branches. e.g. - Mango 🥭 And Solanum . Radical Leaves -  The Leaves Which Are Found Above The Ground And Developes From Undergrounds Stem. e.g.- Onion 🧅 - Anand Kumar   Humbles.in  

Stem

It Is The Main Axis Of The Plants In Which Leaves And Flowers Are Found.   Habit Of Stem :   Herbaceous -  Any Non Woody Stem e.g. - Ranunculus . Woody -  The Stem Of Large Trees And Shrubs. Types Of Stem  -   Aerial -  The Stem Which Are Found Above Ground.            Erect -  Straight Prostate - Weak Stem Climber - Weakest Stem  Special Stem :   Phylloclade -  It Is A Green, Flate Or Round Stem Having Many Internodes With Spiny Leaves. e.g. Opuntia Cladode - It Is A Type Of Phylloclade With One Internode e.g. Asparagus Or Two Internode.  e.g. Roscos External Shape Of Stem  :   Cylindrical -  The Stem Which Is Circular In A Transverse Section. e.g. Lemon Angular -  The Stem Which Shows Many Lateral Angles In  A T.S e.g. Asparagus, Coriandrum Branching In Stem  :  Branched/Unbranched Interior Part Of Stem  : Solid -  The Stem With Filled Interior e.g. Lemon (Rutaceae) Fistular -  The Stem With Hollow Interior e.g. Wheat, Bamboos etc Surface Of Stem : Hairy -  Surface Cover

सुप्रभात

 देखो द्वार पर खुशियाँ हैं आयीं         सूर्य का देख ‘छविजाल’            ‘तरनि-पुत्रि’ मुस्कायी,      पुष्पों ने ‘पंखुड़ि-पट’ खोले अधरों से ‘मकरंद’ पियें ‘भँवरे’ देखो ‘कलिका’ रस भर लायी, उत्ताल करो हृदय की लहरें      अम्बर ने ‘शुचि’ ‘व्योंम’                 सुबह पायी ।।          ☀️ शुभप्रभात…🌞          [तरनि-पुत्रि→सुबह]                - आनन्द कुमार                 Humbles.in

मेरे गुरु जी के लिए मेरा पत्र

 पत्र  - 01 विषय - अध्यापक के नाम पत्र  तिथि - 24/01/2023 वार - मंगलवार  ( मेरे जीवन में किसी एक ही अध्यापक का योगदान नही रहा, जिससे कि मैं केवल एक अध्यापक को ही पत्र लिखूँ, समय - समय पर हमारे सभी गुरुजनों ने हमारा मार्गदर्शन किया, अत: मैं अपने सभी गुरुजनों को पत्र लिख रहा हूँ । ) सेवा में, परम श्रद्धेय गुरुजन सादर चरण स्पर्श आज मैं आपको अपने ब्लाॅग "हम्बल" के माध्यम से पत्र लिख रहा हूँ, जो कि यह प्रथम अवसर है कि मैं आप सब के प्रति पत्र के माध्यम से अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रहा हूँ । इससे पहले मैने आपको कभी भी पत्र नहीं लिखा, क्योंकि जब - जब हमें आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता हुई, तब-तब आप सबने हमारे सिर पर सस्नेह हाथ रखकर अपने शुभाशीष से हमें अभिसिंचित किया ।  आप सब के सानिध्य में रहकर जो ज्ञान हमने अर्जित किया वह अतुल्यनीय है , और आज वही ज्ञान मैं अपने विद्यार्थियों तक  पहुँचा रहा हूँ । मेरे साइन्स के गुरुवर.....  मैं आपसे बहुत ही ज्यादा प्रभावित रहा, आज मैं भी आपके पदचिन्हो पर चलकर साइन्स टीचर बना , आप अच्छे अध्यापक होने के साथ - साथ आप में अच्छे मानवीय गुण भी हैं , जिससे आप स

तेईस जनवरी आज वह स्वर्णिम तारीख : नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

तेईस जनवरी आज वह स्वर्णिम तारीख जिसमें नेताजी ने जन्म लिया, सन् अट्ठारह सौ सत्तानवे ई0 मे उड़ीसा राज्य को सुशोभित किया, आज वह स्वर्णिम तारीख जिसमें नेताजी ने जन्म लिया । बचपन से ही थे वीर, सहासी और बौद्धिक क्षमता वाले, पाया चौथा स्थान आई. सी.एस.परिक्षा में, किन्तु देश की आजादी के खातिर सिविल सर्विस का त्याग किया, आज वह स्वर्णिम तारीख जिसमें नेताजी ने जन्म लिया । गर्म दल के नेता थे वो समझौता कभी किया नहीं, “तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूँगा” नारा देकर युवाओं में जोश भर दिया, आज वह स्वर्णिम तारीख जिसमें नेताजी ने जन्म लिया । वह प्रथम व्यक्ति जिन्होंने “गाँधी जी” को राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया, ऐसे वीर सच्चे देशभक्त को भारत ने बारम्बार प्रणाम किया, आज वह स्वर्णिम तारीख जिसमें नेताजी ने जन्म लिया ।। - आनन्द कुमार Humbles.in

Habit Of Plants

  Herb 🌿 -  The Plants With Soft Stem And  Green Grass Like Leaves. Shrub -  The Plants With Woody And Strong Stem. Tree 🌲-  A Woody Plant With A Single Trunk. Climbers - The Plants With Thin, Long And Weak Stem And  They Need Support To Grow. Epiphyte -  The Plants Which Grow Upon Other Plants But  They Are Autotrophic. Parasite - Those Plants Which Depend Or Grow Upon  Other Living Plants And Absorb Their Nutrition  From Them. Saprophyte -  The Plants Which Grow And Absorb Their  Nutrition From Decaying Organic Substances. Insectivore -  The Plants Which Trapped Small Insects And  Digest Their Protien Matter. e.g.- Drosera And Utricularia. Symbiont - Two Living Organism Which Are Benificial  With Each Other.          - Anand Kumar                        Humbles.in

मनीप्लांट

मनीप्लांट   जगत - प्लांटी वानस्पतिक नाम : Epipremnum aureum  यह मूलत: मलेशिया, इण्डोनेशिया का लता रूप में पसरने वाला पौधा है। यह सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है । इसकी पत्तियाँ सदा हरी रहतीं हैं। ये तने पर एकान्तर क्रम में लगी होती हैं, और हृदयाकार होती हैं । मनी प्लांट देखने में अति सुन्दर होता है, और घर की शोभा बढ़ती है । बहुत से लोगों का मत है, कि घर में यह शुभता का प्रतीक होता है ।

बन्धन

उन बन्धनों को  तोड़ना मुश्किल नहीं होता, जो झूठे होते हैं, चाहें वो प्रेम के हों , या हृदय के जज़्बात के । ये तो मोम के बन्धन होते हैं, जो थोड़ी सी आँच से ही  पिघल जाते हैं । उन बन्धनों को  तोड़ना मुश्किल होता है, जो सच्चे होते हैं , चाहें वो हृदय के जज़्बात के हों , या प्रेम की सौगात के । ये बन्धन तो सागर की गहराई जैसे होते हैं , जिनकी थाह भी लगाना मुश्किल होता है ।। – आनन्द कुमार ("धूप के दीप" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित )   श्री सत्यम प्रकाशन झुंझुनूं राजस्थान

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एवं बिग बैंग परिकल्पना

 ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति — वैज्ञानिकों का मत है कि 10-13 खरब वर्ष पूर्व इलेम  ( Ylem )  नामक आद्य पदार्थ से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई । उस समय यह  अति तप्त विशाल और सघन गैसीय बादल के रूप में था ।  तथा इसका तापमान 5000 - 6000°C से अधिक था ।  बिग बैंग परिकल्पना — ऐबे लमेत्र, गैमो तथा डिक के अनुसार इलेम अति तप्त  काॅस्मिक धूल के बादल के रूप में था । इस बादल में कणों व प्रतिकणों या पदार्थ तथा प्रतिपदार्थ के  बीच टकराव से भयंकर विस्फोट हुआ जिससे इसमें वर्तमान  पदार्थ के हाइड्रोजन एवं हीलियम के परमाणु बने ।  हाइड्रोजन परमाणुओं के इसी पदार्थ ने ब्रह्माण्ड का प्रारम्भिक  पदार्थ बनाया । यह पदार्थ गैस के अनेक पिण्डों में बॅंट गया । प्रत्येक पिण्ड से आकाशगंगा बनी जिसमें अनेक चमकते पिण्ड  बने जिन्हें सितारे या नक्षत्र कहते हैं । इसे अन्तरिक्ष का विकास कहते हैं । पृथ्वी की उत्पत्ति - आज से लगभग 5 - 6 खरब वर्ष पूर्व  पृथ्वी बनी  । तब से आज तक विविध प्रकार के जीवों का विकास हुआ है । - आनन्द कुमार   Humbles.in

कभी तेरी पलकों पे झिलमिलाऊॅं मैं

कभी तेरी पलकों पे झिलमिलाऊँ मैं तू इन्तजार करे और आऊँ मैं , मेरे दोस्त समन्दर में ले जाके फरेब न करना  तू कहे तो किनारे पे ही डूब जाऊँ मैं ।।(१)                   तेरे इश्क़ में आज मैं फना हो जाऊँ  साँसो में साँसो से मिलकर आज मैं शमा हो जाऊँ , आ बैठ पास मेरे ये गुज़ारिश है तुझसे  मैं अपने दर्द - ए - दिल की तुझे कहानी सुनाऊँ ।।(२)                   जब भी तेरा जिक्र होता है मेरे आगे  मैं उसी वक्त काल्पनिक सागर में  उतर जाता हूँ ... खोजना चाहता हूँ मैं उन मोतियों को  जो तूने अपने भीतर संजो के रखे हैं  !!!(३)            - आनन्द कुमार              Humbles.in

किससे तुलना करूॅं तुम्हारी

हृदय में धड़कन की तरह धड़कती हो तुम रिमझिम-रिमझिम सावन की तरह  बरसती हो तुम हृदय की सौगात में पुष्पों की तरह सुगन्धित हो तुम मलयज को सुगन्धित करने वाली पारिजात हो तुम  खिंचे चले आते हैं भॅंवरे ऐसी मधुकोश हो तुम  मन्दिर के दीपक की लौ की तरह पवित्र हो तुम मन्दिरों के शंखों की तरह कर्णप्रिय हो तुम  नदियों की धारा की तरह शाश्वत हो तुम झरनों में कल-कल की तरह प्रतिध्वनि हो तुम  सितारों के मध्य शशि की तरह सुशोभित हो तुम । "आनन्द" सॅंवारे दिन-रात तुम्हें ऐसा कवित्व हो तुम ।। - आनन्द कुमार   Humbles.in

नारी : तुम जीवन की आधारशिला

  नारी तुम जीवन की आधारशिला तुम ही जग जननी हो…. तुम ही लक्ष्मी, तुम ही दुर्गा तुम ही सती सावित्री हो तुम ही कोमल हृदय वाली तुम ही ममता की मूरत हो नारी तुम जीवन की आधारशिला तुम ही जग जननी हो…. कभी कोई हताश होता जीवन में बन उसका दृढ़ संकल्प तुम, तुम ही धैर्य बँधाती हो जीवन को पुष्पों सा महकाती हो नारी तुम जीवन की आधारशिला तुम ही जग जननी हो…. जब कोई बालक खेल-खालकर घर पर वापस आता है, अपनी ममता का आँचल फैलाकर ले गोद में उसे श्रान्ति देती हो, नारी तुम जीवन की आधारशिला तुम ही जग जननी हो…. प्रकृति का श्रंगार तुम ही हो वसंत की बहार तुम ही हो जीवन की खुशियाँ तुमसे ही अलौकिकता का सार तुम ही हो नारी तुम जीवन की आधारशिला तुम ही जग जननी हो…. – आनन्द कुमार     Humbles.in

हम भारतवासी - मेरा वतन मेरी जाॅं

"हम भारतवासी - हम भारतवासी” “न कोई हिन्दू, न कोई मुस्लिम” न कोई धर्म-राशी “हम भारतवासी-हम भारतवासी" । हम तो हैं, भारत की सन्तानें जाति-पाँति हम क्या जानें, साथ रहेंगे-साथ चलेंगे अपने पथ पर अडिग रहेंगे, हम तो अपने देश के पंछी हैं, स्वदेश का जयगान करेंगे हम-सब स्वराष्ट्र-भाषी, “हम भारतवासी-हम भारतवासी" । कर्तव्य के मूल पथ को, हमें खोना न पड़े इन सजल आँखों का सपना हमें तोड़ना न पड़े, बिन माँगे ही मिल जाये, साथ आपका, हमें इस पथ पर, अकेले ही, जाना न पड़े । कर्तव्य के लिए हम, एक पथ पर चलेंगे चाहें लगा देनी पड़े अपने प्राणों की बाजी, नहीं करा सकते, हम अपनी जग में हँसी “हम भारतवासी-हम भारतवासी” । मेरा वतन मेरी जाँ, मिट जाऊँ अपने वतन पे चाहें सौ जन्म भी लेनें पड़ें, इस भू पर मिटने के लिए, पीछे नहीं हटेंगे, हरगिज नहीं डरेंगे, चाहें मृत्यु भी सामने खड़ी हो, हमे लेने के लिए सर्वत्र बिखेरेंगे चन्द्रकित किरणें, जैसे गगन में शशी “हम भारतवासी-हम भारतवासी" ।।   - आनन्द कुमार    Humbles.in ("बज्म़-ए-हिन्द" नामक साझा 'काव्य संग्रह'  में प्रकाशित ) "हिन्दी दैनिक

कह दूॅं अगर इक बात तो नाराज़ तो न होगे

 कह दूँ अगर इक-बात तो नाराज तो न होगे जाम लेकर हाथों से तो न छलकाओगे, अपने अधरों से जिसे तुमने लगाया है उस प्याले की हकीकत तो न भूलोगे, कह दूँ अगर इक बात तो नाराज़ तो न होगे । आँखो में मैंने देखी है, इक अजब सी कशिश जो ठहरने न देगी उस घड़ी तक, चढ़ चुका है, निशा का पहला पहर कह दो तो साथ दूँ गन्तव्य तक, अपने घर का पता तो न भूलोगे, कह दूँ अगर इक बात तो नाराज़ तो न होगे । जा रहे हो तुम अगर तो उनकी गली से न गुजरना, उनकी नजरों से अपनी न नजरें मिलाना, कहीं बदनाम न हो जाना मेरे अज़ीज़ दोस्त बोलो तुम अपनी शख्सियत तो न भूलोगे, कह दूॅं अगर इक बात तो नाराज़ तो न होगे ।   - आनन्द कुमार     Humbles.in  ("धूप के दीप" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित )   श्री सत्यम प्रकाशन झुंझुनूं राजस्थान

बेटी को आगे बढ़ने दो

  बेटी को आगे बढ़ने दो पढ़ने दो इसे पढ़ने दो, बेटों को जो सुख साधन दिये बेटी इससे वंचित क्यों ? बेटी को आगे बढ़ने दो । अपनी सोंच को बदलो इसे चौक-चूल्हे मे ही न रहने दो समानता का अधिकार है इनका बेटी को आगे बढ़ने दो । एक बेटी को शिक्षित करोगे तो पूरा कुल शिक्षित होगा इस कहावत को सही साबित होने दो बेटी को आगे बढ़ने दो । अरे ! अपनी मानसिकता बदलो कि पराया धन है बेटी धन है बेटी इस बात पर गौर करो जब ब्याह कर जायेगी प्रियतम घर उसको सम्मान तो मिलने दो बेटी को आगे बढ़ने दो । आँखों में ओलम्पिक का सपना संजोने दो जब गोल्ड मिलेगा भारत को देश का सम्मान बढ़ाने दो बेटी को आगे बढ़ने दो । पढ़-लिखकर आगे बढ़कर और वैज्ञानिक बनकर देश का सम्मान बढ़ाने दो बेटी को आगे बढ़ने दो ।। - आनन्द कुमार   Humbles.in

रंग गुलाल मोहे पिया लगावैं

रंग गुलाल मोहे पिया लगावैं लपकि-झपकि मोहे अंग लगावैं मैं उन पर जाऊँ वारी भरि पिचकारी मोहे मारी तन भी भीगौ मन भी भीगौ अँखियन-अँखियन महिं मोहि लखावैं रंग गुलाल मोहे पिया लगावैं । पिया संग होरी खेलन कौ यह प्रथमो अवसर मोहि प्राप्ति भयो तन मेरो रंग-गुलाल से सराबोर भयो जीवन कौ ऐसो समय न कबहूँ मोहि दीदार भयो बैर भुलाय, सवै गले लगावैं दौड़ि-दौड़ि कै रंग लगावैं रंग गुलाल मोहे पिया लगावैं । वो गली सै सरपट निकलीं तिरछे नैनों से बात हुई मोरे पिया की अँखियाँ चार भईं पुराने रिश्तों की डोर जुड़ी मोहिं समझन महिं न देर लगी देखत-देखत महिं ही बुलबुल गुलों पर निसार भई । जब लगा गुलाल गुलाबी गालों पर मोरे पिया की पिय की वाँछे खिल गईं । जब पिया को मिला चुम्बन का स्पर्श मईं तौ शरम सै पानी-पानी हुई गई । अँखियन में मईं नीर भरे फागुन की बदरी हुई गई बार-बार मोहिं पिया मनावैं दै चुम्बन मोहिं कंठ लगावैं रंग गुलाल मोहे पिया लगावैं रंग गुलाल मोहे पिया लगावैं ।। – आनन्द कुमार    Humbles.in

होली – महत्व एवं वैज्ञानिकता

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है।  यह प्रमुखता से भारत के अलावा कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू रहते हैं वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। यहाँ तक कि हमारे पड़ोसी मुल्क पाक में भी हमारे हिन्दू भाई इसे धूम-धाम से मनाते हैं । पहले पाक में इस हिन्दू त्यौहार के लिए सरकारी अवकाश का कोई प्रावधान नहीं था, पर अब शायद पिछले दो-तीन वर्षों से हिन्दू जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस दिन सरकारी अवकाश रहता है । अब फिर आते हैं त्योहार की बात पर — पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन कहते हैं। दूसरे दिन रंगोत्सव होता है, जिसमें लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि डालते हैं, और पूरा शरीर रंग – गुलाल से सराबोर हो जाता है, एक – दूसरे को पहचानना मुश्किल हो जाता है, और मुश्किल भी क्यों न हो रंगोत्सव  जो है !!! परन्तु रंग खेलने का मजा तब किरकिरा  हो जाता है जब लोग रंग डालने के नाम पर न जाने क्य

पिता - जीवन का आधार

हाँ पिता ही हैं, जीवन का आधार घर की खुशियाँ पिता से ही हैं, मुझे याद है अभी भी – मेरी उँगली पकड़कर, बाजार को ले जाते जब मैं थक जाता तो कन्धे पे बिठाके खूब सैर कराते । पिता पूरे परिवार को एक सूत्र में बाँधता है, अपनी खुशियों को बच्चों की तरक्की में खोजता है, बच्चों में अच्छे संस्कार के लिए माँ के साथ पिता का भी अहम योगदान रहता है । बाहर से कठोर , अन्दर से कोमल हाँ नारियल सा अस्तित्व रहता है, पिता की छत्र – छाया में घर सुसज्जित एवं सुरक्षित रहता है । जमाने भर का बोझ, वह बच्चों के लिए उठाता है, लालन – पालन में कोई कमी न आ जाये, इसलिए जी तोड़ मेहनत करता है, बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है । पिता तो ईश्वर की नेमत है, पिता तो भौतिक एवं रासायनिक आधार है, पिता से ही तो सारा जहां है, माँ यदि धरती तो पिता आसमाँ है ।। – आनन्द कुमार    Humbles.in

बोर्ड परीक्षा की तैयारी कैसे करें

# बोर्ड परीक्षा की तैयारी कैसे करें  # कैसे पढ़ें कि पढ़ा हुआ सब याद हो जाए  # बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बातें जो आपको बना सकती हैं टॉपर  प्रिय विद्यार्थियों बोर्ड परीक्षा नजदीक है और आप सभी के मस्तिष्क में एक ही बात घूम रही होगी कि पेपरों की तैयारी कैसे करें ? कैसे पढ़ाई करें कि पढ़ा हुआ सब याद हो जाए और मैं भूलूॅं भी ना । साथ ही मैं आपको यह समझा दूॅंगा कि बोर्ड परीक्षा में कॉपी कैसे लिखें कि आपको आपकी मेहनत का प्रतिफल मिल जाए  बहुत से बच्चों को यह शिकायत रहती है कि सर मैंने सभी प्रश्न हल किए थे परन्त इच्छा अनुरूप रिजल्ट नहीं आया । तो मैं आज आप सबको कुछ महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहा हूॅं जो आपको परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए कारगर सिद्ध हो सकती हैं।  बोर्ड परीक्षा की तैयारी कैसे करें - जब बोर्ड परीक्षा नजदीक आती है तब बच्चों में घबराहट उत्पन्न हो जाती है वह सोचते हैं क्या - क्या पढ़ा जाए, क्या ना पढ़ा जाए ऐसा तो नहीं जो मैं पढ़ रहा हूॅं, याद कर रहा हूॅं, वह बोर्ड परीक्षा में आए ही ना । यदि आप इस उधेड़बुन में हैं तो आप एक अच्छे विद्यार्थी की भाॅंति व्यवहार नहीं कर रहे हैं ।

मेघ - वर्षा

  ओह ! वो पूरब के ‘व्योंम’, घिरते आते ‘घनश्याम’, जस सुबाम पश्च केशपाश , तस शुचि व्योंम पश्च घिरते घनश्याम । उमड़ि-घुमड़ि , चमकि-दमकि, विजन अम्बर में करते रोर, मनहुँ ‘देव’ दुंदभि बजावति खल दल भाजति चहुँओर । मेघ ध्वनि करते इति-जोर नभ का हिल जाता ओर-छोर । प्रतनु हृदय तरजति, कैसी है, ये धुधकारि, स्वगृह वातायनों से झाँकति किसकी है,ये ललकारि । तरु झर्झर करते घनघोर बढ़ता जाता वेग अति जोर काली-घटा छाती जाती रविमण्डल लुप्त होति चहुँओर । नभ से बूँदें अविरल गिरती पृथ्वी पर रव पल-पल करतीं इक विशेष ध्वनि करती जातीं मानहुँ सुरबनितनि बृंद सहित मंगलाचार गातीं जातीं । नदियों में दादुर ध्वनि करते ‘जलव्यालनि’ प्रेम-प्रसंग करते । वर्षा मन्द होती जाती शीतल मन्द बयार चलती जाती काली-घटा छटती जाती अम्बर में लालिमा छाती जाती । विहग नीड़ों से निकलते भोजन के लिए वे विचरते ‘नीलाम्बर’ में उड़ते जाते सजल सन्देश देते जाते । । - आनन्द कुमार Humbles.in

एक शहीद फ़ौजी का बेटा

  " एक शहीद फौजी का बेटा" अपनी माँ से कुछ यूँ बोला - शहीद हुये हैं, सरहद पर पिता हमारे  अब मैं भी लड़ने जाऊँगा । चढ़कर दुश्मन की छाती पर  अपने पैरों तले रौंदकर , उनके टैंक नेस्तनाबूद कर  अंजाम तक पहुँचाऊँगा । तू चुप हो जा माँ,  मत रो माँ , खाता हूँ तेरी कसम माँ,  तेरा शीश नहीं झुकने दूँगा  अपनी मातृभूमि की रक्षा खातिर  सर्वस्व बलिदान कर जाऊँगा ।।   - आनन्द कुमार   Humbles.in ("धूप के दीप" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित) श्री सत्यम प्रकाशन झुंझुनूं राजस्थान.

शिक्षण विधि : भाग - १ "पाठ योजना"

जब शिक्षण की बात आती है , तब सबसे पहले दिमाग में एक बात घूमती है , कि ऐसी कौन सी शिक्षण विधि अपनायी जाये, जिससे छात्रों को अध्यापकों द्वारा पढ़ाया गया पाठ तुरन्त ही समझ में आ जाये ।  हमें एक ऐसी शिक्षण विधि अपनानी होगी, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक हो । शिक्षण के उद्देश्यों की सफलता को उच्चतम ऊंचाई तक पहुंचाने में शिक्षण विधियों का महत्वपूर्ण योगदान है । शिक्षण कार्य की आधी सफलता शिक्षण विधियों में निहित है । समुचित शिक्षण विधियों के बिना शिक्षण उद्देश्यों की सफलता प्राप्ति उसी प्रकार है, जिस प्रकार एक बिना पंखों का पक्षी उड़ तो नहीं सकता परन्तु वह फड़फड़ाता रहता है , ठीक इसी प्रकार अध्यापक भी वगैर किसी शिक्षण विधि के, वगैर किसी पाठ-योजना के पढ़ाता है , तो वह निश्चित ही अपनी ऊर्जा को फालतू में व्यय करता है , और उसे सही मायनों में परिवर्तित करने में असफल रहता है ।  शिक्षण विधि की सफलता शिक्षक , विद्यार्थी ,पाठ्यवस्तु पर निर्भर करती है । छात्र को सीखने के लिए शिक्षक का ज्ञान उतना महत्वपूर्ण नहीं है , जितनी कि शिक्षक द्वारा प्रयुक्त शिक्षण विधि ।  क्योंकि यदि शिक्षक ने छात्रो

प्रिय मिलन को उत्सुक

 आज जा रही हो प्रियतम से मिलने अन्तिम बार तुम दिल दुखाया था तुम्हारा रिश्ता तोड़ा था तुमसे रिश्ते को एक अवसर देने जा रही हो । बिखरी हुई ज़िन्दगी को संवारने जा रही हो  खुशियों को फिर से जीने जा रही हो जो ख्वाबों में देखा, हृदय में संजोया  उस प्रेम को महसूस करने जा रही हो । होंठो पर ओस की बूंदों को खिला देखना चाहती हो  प्रियतम की बांहों में सिमटकर उर में समाना चाहती हो उनकी बेमुरब्बत, बंदिशें, गिले-शिकबे सारे भूलकर दो जिस्म एक जान होना चाहती हो । न जाने क्या होगा,  क्या कहेंगे वो  बागों में फिर से फूल खिलेंगे,  या चमन उजड़ेगा इस उधेड़बुन में न बैठो तुम । तू न यूँ मायूस होना  हो अडिग सामना करना  लक्ष्य की प्राप्ति के खातिर पथ पर आगे बढ़ते रहना । ये जो घिर रहें हैं बादल  काले घन के रूप में , तू न घबराना कि मैं अकेली हूँ , इस राह में । दृढ़ संकल्प कर ले तू  अपने हृदय में , हार न मानूँगी मैं तेरे प्यार में  आ पहुँचूँगी प्रियतम मैं तेरे पास में , इसलिए आज बैठी हूँ , फिर से गाड़ी के इन्तजार में ।।       - आनन्द कुमार         Humbles.in

सरस्वती वन्दना - हे ! वीणावादिनी वर दे

 हे ! वीणावादिनी वर दे, इस विचलित मन में सानंद भर दे, आत्मा का परमात्मा से मिलन करा दे, हे ! वीणावादिनी वर दे । है मनुष्य विनाश की कगार पर खड़ा, इसके सिर पर जरा अपना हाथ फिरा, इसके जीवन में खुशियाॅं भर दे, हे ! वीणावादिनी वर दे । मनुष्य को उसके कर्मों का फल दे, भटके हुए को पथ दिखा दे, हे ! वीणावादिनी वर दे । इसकी सुअभिलाषाओं को पूर्ण कर दे, इसका जग जीवन सुफल बना दे, हे ! वीणावादिनी वर दे । हम तो जीवन का उल्लास खो बैठे, अपना स्वानन्द खो बैठे, हमारे जीवन को खुशियों से भर दे, हे ! वीणावादिनी वर दे । हे ! माते भारत के वो स्वर्णिम दिन ला दे, इसको फिर से सोने की चिड़िया बना दे, हे ! वीणावादिनी वर दे । जिस पावन पृथ्वी पर जन्म लिया, उसी पर न्योछावर कर दे, हे ! जगत जननि वर दे, हे ! वीणावादिनी वर दे । - आनन्द कुमार   Humbles.in ("धूप के दीप" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित ) श्री सत्यम प्रकाशन झुंझुनूं राजस्थान

गुलाब

फूलों के दर्द को किसी ने नहीं समझा है, लोगों ने उन्हें सिर्फ मुस्कुराते हुए देखा है, ये फूल गम में भी मुस्कुराने की फिजा रखते हैं, हमनें तो इन्हें काँटों में भी खिलते हुए देखा है, अपने वजूद को इन्होंने बचाकर रखा है, खुद टूटकर दो दिलों को मिलाकर रखा है, बिखेरते हैं खुशबू , दो दिलों के बीच इसलिए प्रेमियों ने इनका नाम “गुलाब” रखा है ।। – आनन्द कुमार Humbles.in

माॅं - ईश्वर का वरदान हो तुम

तुम्हारे किन-किन रूपों को  आज मैं लिखूॅं माॅं , ममतामयी हो, तुम करुणामयी हो  तुम्हारी चरण-रज आज शीश माथे धरूॅं माॅं । ईश्वर का वरदान हो तुम वात्सल्य का भण्डार हो तुम, अपने स्नेहाशीष हाथों से जब मेरा शीश सहलाती हो माॅं , मैं अपनी हर पीड़ा,हर दुःख क्षणिक भूल जाता हूॅं माॅं । मैंने ईश्वर को तो नहीं देखा, परन्तु मुझे विश्वास है माॅं , वो तुम्हारे जैसा ही दिखता होगा, मेरे कुछ बोलने से पहले, मेरी इच्छाओं को तुम कैसे जान जाती हो माॅं । बचपन में मुझे अपने हाथों से खिलाती थी माॅं , जरा हिचकी अगर आ जाती तो जल्द ही पानी पिलाकर पीठ सहलाती थी माॅं । ऋण तुम्हारा न कभी चुका पाऊॅंगा माॅं   ख्वाहिश है, कि तेरे लिये कुछ कर पाऊॅंगा माॅं , मेरी सबसे भोली माॅं मेरी सबसे प्यारी माॅं ।। - आनन्द कुमार   Humbles.in ("मेरी माॅं" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित ) "श्री सत्यम प्रकाशन" झुंझुनूं (राजस्थान)

हे ! नारी तेरे कितने रूप

 ‍ ‌हे ! नारी तेरे कितने रूप इक माॅं ने इक प्यारी सी  परी को जन्म दिया  वह नन्हीं सी परी  बिटिया कहलायी । राखी के धागों से  सुशोभित होगी कलाई मेरी  भाइयों के खिल उठे चेहरे  मेरी बहन है, घर आयी । बड़ी हुई प्रकृति के नियमों के अनुरूप  विकसता उसका नवल स्वरूप  कुछ सपने संजोए हृदय में  आशाओं के झिलमिल सितारों के रूप । माॅं कभी-कभी ठिठोली करती  जायेगी तू इक दिन अपने प्रीतम के घर, थोड़ा सा मुस्कुराकर, थोड़ा सा शर्माकर आ गले से तुरत ही लिपटकर  कहती वो - जाऊॅंगी न माॅं मैं बाबुल का अंगना छोड़कर । एक समय वह भी आया  जब बिटिया,  बनकर बहू   ससुराल को आयी, बन जीवन-संगिनी पिया की  उसने पिय-संग प्रीत लगायी ।  यहां कई रिश्तों की डोर जुड़ी धीरे-धीरे समय की धुरी आगे बढ़ी  'फिर इक सुंदर सी कली खिली' माॅं बनकर आनंदित हुआ हृदय लालन-पालन की चाॅंह बढ़ी ।  सशक्त है नारी इस समाज में कई रूपों में ढलना इनको भाता है,  कभी सुता, भगिनी, कभी संगिनी बनकर  जीवन पथ पर चलना इनको आता है ।।     -आनन्द कुमार      Humbles.in

हाइकु कविताऍं कैसे लिखें

  हाइकु हिन्दी काव्य का सुन्दरतम छन्द है। और मेरी पसंदीदा विधाओं में से एक है ।  इसमें तीन चरण होते हैं, पहले चरण में पाँच वर्ण, दूसरे में सात वर्ण एवं तीसरे में पाँच वर्ण होते हैं । (अर्थात ५-७-५ के रूप में क्रमान्तरित होते हैं । )  इस तरह तीनों चरणों में कुल सत्रह( १७ ) वर्ण होते हैं। हाइकु विधा में हलन्त ( ् ) की गिनती नहीं की जाती है । जैसे - ' तत्पर ' में त् (आधा त् ) की गिनती नहीं की  जाएगी ।  इस शब्द में त, प और र की ही गिनती की जाएगी ।  इस प्रकार तत्पर में (त=१,त्प=१,र=१) १+१+१=३ वर्ण ही माने जाएँगे । वर्णों को कुछ इस प्रकार से गिन सकते हैं - उदाहरण के लिए - १ २ ३ ४ ५ सोने की कली =५ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ मिट्टी भरे जग में =७ १ २ ३ ४ ५ किसको मिली। =५ ( उदाहरण में दिया गया हाइकु गोपालदास नीरज  द्वारा रचित है ) वैसे हाइकु मूल रूप से जापानी विधा है। हाइकु का जन्म जापानी संस्कृति की परम्परा, जापानी जनमानस और सौन्दर्य चेतना में हुआ और वहीं काव्यबद्ध हुआ ।  " मात्सुओ बाशो " एक महान जापानी कवि थे, जो ' हाइकु काव्य विधा ' के जनक माने जाते हैं। हाइकु कविता

भवक्लांत हृदय

आह ! यह कैसा विषाद  मन हो उठता क्लांत  इस करुणा कलित हृदय में  आज यह कैसा अवसाद ? अचानक हृदय हुआ अधीर कैसी है, ये मन की पीर सुनकर उसकी करुण पुकार  आंखों से निकले अश्रु अपार । मलयज मलयज न बन पायी इस करुणित हृदय को, न कोई लहर भायी  शून्य में फिरता रहा, न कोई शीतकर नजर आयी ! हृदय में खोजता रहा अन्तर्पथ  न मिला कोई रमणीय प्रदेश   शाश्वत बहता रहा विषाद  न पाया हसित् मनोदेश । फिर तिमिर में फिरा मैं न अधरों पर मुस्कान आयी  शशि के सौंदर्य को देखता रहा  पर इस क्षुभित मन ने मुकुर में  न सुष्मित सूरत दिखायी । मन जा पहुंचा व्योंमवीथिका में  सोंचा सुरेसचाप के वर्ण देख लूं तिमिरांचल ने भी क्या खूब करतूत दिखाई  थकित हुआ तृषित मन न हृदय ने तृप्ति पायी । वापस लौटा इस भू पर  सजे देखे नीहार आवरण   भटका मन इधर-उधर  न ओसकन भायी ।  सोंचा ये संसृति के आंसू हैं संसृति लेखा ने न इस पर नजर दौड़ायी  संसृति के नयनों से बह रहे अश्रु  संसृति ईश ने न संसृति पर दुकुल चादर उढ़ाई । आगे बढ़ा क्षुब्ध मन  वहां मधुपुरी नजर आयी  सोंचा ज्योतिवंत प्रभु से विनय करुं पर वहां भी न घनसार की सुगंध भायी । भुवि पर भटकता र