हे ! नारी तेरे कितने रूप
इक माॅं ने इक प्यारी सी
परी को जन्म दिया
वह नन्हीं सी परी
बिटिया कहलायी ।
राखी के धागों से
सुशोभित होगी कलाई मेरी
भाइयों के खिल उठे चेहरे
मेरी बहन है, घर आयी ।
बड़ी हुई प्रकृति के नियमों के अनुरूप
विकसता उसका नवल स्वरूप
कुछ सपने संजोए हृदय में
आशाओं के झिलमिल सितारों के रूप ।
माॅं कभी-कभी ठिठोली करती
जायेगी तू इक दिन अपने प्रीतम के घर,
थोड़ा सा मुस्कुराकर, थोड़ा सा शर्माकर
आ गले से तुरत ही लिपटकर
कहती वो - जाऊॅंगी न माॅं मैं
बाबुल का अंगना छोड़कर ।
एक समय वह भी आया
जब बिटिया,
बनकर बहू
ससुराल को आयी,
बन जीवन-संगिनी पिया की
उसने पिय-संग प्रीत लगायी ।
यहां कई रिश्तों की डोर जुड़ी
धीरे-धीरे समय की धुरी आगे बढ़ी
'फिर इक सुंदर सी कली खिली'
माॅं बनकर आनंदित हुआ हृदय
लालन-पालन की चाॅंह बढ़ी ।
सशक्त है नारी इस समाज में
कई रूपों में ढलना इनको भाता है,
कभी सुता, भगिनी, कभी संगिनी बनकर
जीवन पथ पर चलना इनको आता है ।।
-आनन्द कुमार
Humbles.in
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