पिय मिलन श्रृंगार दर्पन , नदी की चंचलता धारा शाश्वत, सुष्मित हृदय जीवन शाश्वत, कंठ का स्वर पक्षी का कलरव, सूर्य किरण उजला मन, नौका विहार जल तरंग, दीपक की लौ प्रकाशित मन, सत्कर्म जीवन धर्म, सुगंध हारसिंगार का पुष्प । - आनन्द कुमार Humbles.in
कभी तेरी पलकों पे झिलमिलाऊँ मैं
तू इन्तजार करे और आऊँ मैं ,
मेरे दोस्त समन्दर में ले जाके फरेब न करना
तू कहे तो किनारे पे ही डूब जाऊँ मैं ।।(१)
तेरे इश्क़ में आज मैं फना हो जाऊँ
साँसो में साँसो से मिलकर आज मैं शमा हो जाऊँ ,
आ बैठ पास मेरे ये गुज़ारिश है तुझसे
मैं अपने दर्द - ए - दिल की तुझे कहानी सुनाऊँ ।।(२)
जब भी तेरा जिक्र होता है मेरे आगे
मैं उसी वक्त काल्पनिक सागर में
उतर जाता हूँ ...
खोजना चाहता हूँ मैं उन मोतियों को
जो तूने अपने भीतर संजो के रखे हैं !!!(३)
- आनन्द कुमार
Humbles.in
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