कह दूँ अगर इक-बात तो नाराज तो न होगे
जाम लेकर हाथों से तो न छलकाओगे,
अपने अधरों से जिसे तुमने लगाया है
उस प्याले की हकीकत तो न भूलोगे,
कह दूँ अगर इक बात तो नाराज़ तो न होगे ।
आँखो में मैंने देखी है, इक अजब सी कशिश
जो ठहरने न देगी उस घड़ी तक,
चढ़ चुका है, निशा का पहला पहर
कह दो तो साथ दूँ गन्तव्य तक,
अपने घर का पता तो न भूलोगे,
कह दूँ अगर इक बात तो नाराज़ तो न होगे ।
जा रहे हो तुम अगर
तो उनकी गली से न गुजरना,
उनकी नजरों से अपनी न नजरें मिलाना,
कहीं बदनाम न हो जाना मेरे अज़ीज़ दोस्त
बोलो तुम अपनी शख्सियत तो न भूलोगे,
कह दूॅं अगर इक बात तो नाराज़ तो न होगे ।
- आनन्द कुमार
Humbles.in
("धूप के दीप" नामक साझा 'काव्य संग्रह' में प्रकाशित )
श्री सत्यम प्रकाशन झुंझुनूं राजस्थान
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