आज जा रही हो
प्रियतम से मिलने अन्तिम बार तुम
दिल दुखाया था तुम्हारा
रिश्ता तोड़ा था तुमसे
रिश्ते को एक अवसर देने जा रही हो ।
बिखरी हुई ज़िन्दगी को संवारने जा रही हो
खुशियों को फिर से जीने जा रही हो
जो ख्वाबों में देखा, हृदय में संजोया
उस प्रेम को महसूस करने जा रही हो ।
होंठो पर ओस की बूंदों को खिला देखना चाहती हो
प्रियतम की बांहों में सिमटकर उर में समाना चाहती हो
उनकी बेमुरब्बत, बंदिशें, गिले-शिकबे सारे भूलकर
दो जिस्म एक जान होना चाहती हो ।
न जाने क्या होगा,
क्या कहेंगे वो
बागों में फिर से फूल खिलेंगे,
या चमन उजड़ेगा
इस उधेड़बुन में न बैठो तुम ।
तू न यूँ मायूस होना
हो अडिग सामना करना
लक्ष्य की प्राप्ति के खातिर
पथ पर आगे बढ़ते रहना ।
ये जो घिर रहें हैं बादल
काले घन के रूप में ,
तू न घबराना कि मैं अकेली हूँ ,
इस राह में ।
दृढ़ संकल्प कर ले तू
अपने हृदय में ,
हार न मानूँगी मैं तेरे प्यार में
आ पहुँचूँगी प्रियतम मैं तेरे पास में ,
इसलिए आज बैठी हूँ ,
फिर से गाड़ी के इन्तजार में ।।
- आनन्द कुमार
Humbles.in
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