बात जून 2013 की है, जब मैं एग्जाम खत्म होने के बाद गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने के लिए घर पर आया हुआ था । लगभग एक वर्ष होने को था, तब से मैंने कुछ भी नहीं लिखा था , इससे पहले मैंने कुछ कवितायें और कहानियाँ लिखीं थीं, लेकिन उस दिन मैंने ठान ही लिया था, कि मैं आज अवश्य ही कुछ न कुछ लिखूँगा । मैंने पेन और कॉपी ली, और छत पर आ गया । मैं पश्चिम दिशा की ओर बैठ गया, सूर्य बिल्कुल हमारे सामने था, जो कुछ समय पश्चात अस्त होने वाला था । जून का महीना था, हवा मध्यम गति से चल रही थी, जो ठण्डी और सुहावनी थी । आस-पास का वातावरण शान्त था । मैं अपने साथ एक पेज भी लाया था, जिस पर एक अधूरी गद्य रचना थी, सोचा कि आज इसे अवश्य पूरा कर लूँगा, मैंने पेन उठाया और उस पर लिखने के लिए कुछ सोचने लगा, परन्तु कुछ शब्द नहीं बन पा रहे थे, कभी पेन के ऊपरी हिस्से को दाँँतों के बीच में रखता और कभी अपने मोबाइल फोन को अंगुलियों के सहारे से उसे वृत्ताकार घुमाता, परन्तु कुछ लिखने के बजाय, मैं मंत्रमुग्ध सा एकटक सामने की ओर देखता रहता ! और देखता क्यूँ नहीं, सामने एक ऐसी विषय वस्तु ही थी, जो हमारा ध्यान अपनी ओ
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