हाइकु हिन्दी काव्य का सुन्दरतम छन्द है। और मेरी पसंदीदा विधाओं में से एक है ।
इसमें तीन चरण होते हैं, पहले चरण में पाँच वर्ण, दूसरे में सात वर्ण एवं तीसरे में पाँच वर्ण होते हैं । (अर्थात ५-७-५ के रूप में क्रमान्तरित होते हैं । )
इस तरह तीनों चरणों में कुल सत्रह(१७) वर्ण होते हैं। हाइकु विधा में हलन्त ( ् ) की गिनती नहीं की जाती है ।
जैसे - ' तत्पर ' में त् (आधा त् ) की गिनती नहीं की
जाएगी ।
इस शब्द में त, प और र की ही गिनती की जाएगी ।
इस प्रकार तत्पर में (त=१,त्प=१,र=१) १+१+१=३ वर्ण ही माने जाएँगे । वर्णों को कुछ इस प्रकार से गिन सकते हैं -
उदाहरण के लिए -
१ २ ३ ४ ५
सोने की कली =५
१ २ ३ ४ ५ ६ ७
मिट्टी भरे जग में =७
१ २ ३ ४ ५
किसको मिली। =५
( उदाहरण में दिया गया हाइकु गोपालदास नीरज
द्वारा रचित है )
वैसे हाइकु मूल रूप से जापानी विधा है। हाइकु का जन्म जापानी संस्कृति की परम्परा, जापानी जनमानस और सौन्दर्य चेतना में हुआ और वहीं काव्यबद्ध हुआ ।
" मात्सुओ बाशो " एक महान जापानी कवि थे, जो ' हाइकु काव्य विधा ' के जनक माने जाते हैं। हाइकु कविता की लोकप्रियता और समृद्धि में उनका विशेष योगदान है।
उनकी यात्रा डायरी 'ओकु-नो-होसोमिचि ' जापानी साहित्य की अमूल्य निधि मानी जाती है।
हिन्दी में हाइकु लिखने की दिशा में बहुत तेजी आई है। लगभग सभी पत्र-पत्रिकाएँ हाइकु कविताएँ प्रकाशित कर रही हैं। आकाशवाणी दिल्ली तथा दूरदर्शन द्वारा हाइकु कविताओं को कविगोष्ठियों के माध्यम से प्रसारित किया जा रहा है। सैकड़ों "हिन्दी हाइकु संकलन" प्रकाशित हो चुके हैं।
"हाइकु दर्पण पत्रिका" वर्तमान में हिन्दी हाइकु कविता की सम्पूर्ण पत्रिका है। और लगभग सभी साहित्यिक पटलों पर हाइकु कविताओं का सृजन हो रहा है ।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर या रवीन्द्रनाथ टैगोर जी (जिन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। ये विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें नोबेल पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया था । ) और उनके बाद सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"जी ने अपनी जापान यात्रा से वापस आते समय जापानी हाइकु कविताओं से प्रभावित होकर उनके अनुवाद किए जिनके माध्यम से भारतीय हिन्दी पाठक 'हाइकु` के नाम से परिचित हुए ।
इसके बाद "जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली" में जापानी भाषा के पहले प्रोफेसर डॉ॰ सत्यभूषण वर्मा ने जापानी हाइकु कविताओं का सीधा हिन्दी में अनुवाद करके भारत में उनका प्रचार-प्रसार किया। इससे पूर्व हाइकु कविताओं के जो अनुवाद आ रहे थे वे अंग्रेजी के माध्यम से हिन्दी में आ रहे थे, प्रो॰ वर्मा ने जापानी हाइकु से सीधा हिन्दी अनुवाद करके भारत मे उसका प्रचार-प्रसार किया । फलस्वरूप आज भारत में हिन्दी हाइकु कविता लोकप्रिय होती जा रही है, और लगभग सभी रचनाकार हाइकु अवश्य लिखते हैं ।
यहां कुछ हाइकु को प्रस्तुत कर रहा हूं , जो हिन्दी साहित्य के महान कवि " गोपालदास नीरज " द्वारा रचित हैं -
1.
ओस की बूंद
फूल पर सोई जो
धूल में मिली
2.
वो हैं अपने
जैसे देखे हैं मैंने
कुछ सपने
3.
किसको मिला
वफा का दुनिया में
वफा हीं सिला
4.
तरना है जो
भव सागर यार
कर भ्रष्टाचार
5.
क्यों शरमाए
तेरा ये बांकपन
सबको भाए
निम्नलिखित कुछ हाइकु प्रस्तुत कर रहा हूं, जो मेरे द्वारा रचित हैं –
जीवन संग
रहें होली के रंग
प्रेम प्रसंग।। 1
प्रेम मिलन
खिल उठे नयन
हर्षित मन।। 2
मन्द पवन
उड़ रहीं हैं लटें
सम्भालती वो ।। 3
सुन्दर काया
धनुषाकार भौहें
मुस्कित होंठ।। 4
गोरी के मारी
भरि के पिचकारी
भीगी है साड़ी।। 5
पीली सरसों
से उड़ी है तितली
रंग रंगीली ।।6
बाट जोहती
नीली पीली कंटेली
आयी तितली।। 7
बेर रसीले
तोड़े खाये बच्चों ने
देखी तितली।। 8
उड़ी भंभीरी
बच्चों ने है पकड़ी
मुट्ठी जकड़ी ।। 9
कारी बदरी
रिमझिम बरसे
आशायें ही थीं।। 10
वो न बरसी
निकल गयी वह
मुंह फुलाये ।। 11
खिला वसंत
फूलों की फुलवारी
लगती प्यारी।। 7
– आनन्द कुमार
Humbles.in
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